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Todays Work
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इसमें दोराय नहीं है कि समाज के उत्थान के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति किसी के ज्ञान का दीपक जलाता है तो उसके प्रयास की सराहना अवश्य होनी चाहिए। होना यह चाहिए कि दूसरे लोग भी ऐसे प्रयासों से प्रेरणा लेकर समाज की बेहतरी के लिए कार्य करें। यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोई विदेशी नागरिक देश में आकर समाज के उत्थान के लिए कार्य करने में जुटा हो। फ्रांस की महिला डोमेनिक डुफो मनाली में घुमंतू परिवारों के बच्चों को शिक्षा के माध्यम से समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में जुटी हैं तो इसमें समाजसेवी संस्थाओं व गैर सरकारी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए। शिक्षा के दीप से किसी के अंधेरे जीवन में अगर रोशनी की जा सके, तो इससे बेहतर कोई कार्य नहीं हो सकता। लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि शिक्षा अनमोल धन है। शिक्षित व्यक्ति अपना व परिवार का पालन-पोषण बेहतर तरीके से कर सकता है और सामाजिक सरोकारों को अपनाकर समाज की भलाई में योगदान बेहतर तरीके से दे सकता है। पहल यह भी की जा सकती है कि स्वयंसेवी संगठनों के सदस्य या सेवानिवृत्त व्यक्ति अशिक्षित लोगों को शिक्षित करने के लिए जागरूक करें। माना कि हिमाचल प्रदेश में साक्षररता दर दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतरीन है, लेकिन अगर समाज के कुछ लोगों के प्रयासों से यह शत-प्रतिशत हो जाए तो इससे बेहतरीन कुछ नहीं हो सकता। शिक्षा ही नहीं पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण व जनसंख्या नियोजन की दिशा में भी ऐसे सार्थक प्रयास किए जा सकते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण इंग्लैंड की युवती जूडी अंडरहिल्स का भी है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए अलख जगा रही है। उसी के प्रयास का ही परिणाम है कि प्रदेश में कई ऐसे स्थान, जहां पहले कचरा फैला रहता था, वे आज साफ-सुथरे हैं। एक विदेशी द्वारा हिमाचल में आकर सफाई का बीड़ा उठाना सुखद है, मगर सवाल यह उठता है कि ऐसे प्रयास स्थानीय लोगों द्वारा क्यों नहीं किए जाते? लोगों को समझना चाहिए कि यदि वे अपने आसपास सफाई रखते हैं तो पर्यटकों व विदेशियों की दृष्टि में प्रदेश की बेहतर छवि दिखेगी। सफाई को अगर आदत बना लिया जाए तो गंदगी की समस्या दूर हो सकती है। सरकार को भी चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति शिक्षा के प्रयास व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल कर रहा है तो उसका सम्मान किया जाए ताकि दूसरों को भी प्रेरणा मिल सके।
एक के बाद एक कई राज्यों ने अपने यहां गुटखा बनाने, बेचने और खाने पर प्रतिबंध लगाने का अध्यादेश जारी किया है। इसी क्रम में ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) के कुछ गांवों ने भी अपने यहां गुटखा, तंबाकू और मदिरा विक्रय, क्रय और सेवन को पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया है। इन गांवों में इन्हें बेचने वालों पर एक हजार, सेवन करने वालों पर पांच सौ रुपये का दंड और इनकी बिक्री व प्रयोग की सूचना देने वाले को सौ रुपये के इनाम की घोषणा की गई है। इस तरह की सामूहिक सामाजिक पहल हममें एक नई ऊर्जा भरती है। लगता है कि समाज में सब कुछ बुरा ही नहीं है। कुछ अच्छे काम भी हो रहे हैं। किंतु यह दुखद है कि इस प्रकार के सकारात्मक और समाज सुधारक कार्य अधिक प्रचारित नहीं हो पाते।
मीडिया नकारात्मक घटनाओं पर अधिक केंद्रित हो गया है, जबकि हम सबका यह सामाजिक कर्तव्य है कि सकारात्मक खबरों का ज्यादा प्रसारित करें। अब जब तंबाकू व शराब के प्रतिबंध के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, तो शासन-प्रशासन, प्रेस-बुद्धिजीवी सभी की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस मुहिम को आगे बढ़ाएं। यह अपने आप में उपलब्धि है कि समाज के कुछ लोगों ने नशे की बीमारी के उन्मूलन की शपथ ली है। उन्होंने इसके लिए नशे के शिकार और इससे मुक्ति पा चुके लोगों को एकजुट करके यह अभियान चलाया है। चूंकि अधिकांश समाज नशे की चपेट में है, इसलिए यह कदम मुखर नहीं बन सका है। पर जो लोग नशा नहीं करते, उनके लिए यह बड़ी कामयाबी है।
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